भारत में सामान्यत: जितने दूध की जितनी जरुरत है उतना उत्पादन नहीं है इससे स्थति बिलकुल साफ़ है कि डेयरी उधोग में भारत के पशुपालको सहित अनेकों युवाओं के लिय प्रगति करने की अपार सम्भानाये हैं भारत में दूध के उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन / उपभोग का एक अनूठा पैटर्न है, जो किसी भी बड़े दूध उत्पादक देश के लिए अतुलनीय है। हालांकि भारत दुनिया में ऐसा देश है जहाँ वह सबसे बड़ा दूध उत्पादक और डेयरी उत्पादों का उपभोक्ता है, भारत अपने स्वयं के दूध उत्पादन का लगभग 100% खपत करता है।लेकिन अधिक लाभप्रदता प्राप्त करने के लिए, गुणवत्ता मानकों में सुधार करने की आवश्यकता है। भारतीय डेयरी क्षेत्र अन्य डेयरी उत्पादक देशों से अलग है, क्योंकि यहाँ गाय और भैंस के दूध पर जोर दिया जाता है। व्यावहारिक डेयरी फार्मिंग के लिय भारतीय डेयरी क्षेत्र के सामने कुछ चुनौतियां हैं
यहाँ पर बड़ी संख्या में अनुपयोगी पशु हैं, जो उपलब्ध चारा और फ़ीड के उपयोग में दुधारू पशुओं के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं। चारागाह क्षेत्र को औधोगिक विकास के कारण हर साल कम किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप दुधारू पशुओं की कुल आवश्यकता के लिए चारा और चारे की आपूर्ति में कमी आई है। जिसके कारण मांग और आपूर्ति में अंतर बडता है दुधारू पशुओं के लिय चारा मंहगा मिलता है
इसके अलावा, दुधारू पशुओं को चारा की खराब गुणवत्ता कारण दूध उत्पादन प्रणाली अस्त व्यस्त करता है। डेयरी विकास में लगे छोटे और सीमांत किसानों और खेतिहर मजदूरों की कम क्षमता से फीड खरीदने के लिए अपर्याप्त भोजन और फीड करने की क्षमता कम हो जाती है। मिनरल मिक्सचर के पूर्ति की कमी के परिणामस्वरूप रोग होते हैं। निम्न गुणबत्ता और उच्च लागत वाला भोजन डेयरी उधोग के मुनाफे को कम करता है।
अधिकांश भारतीय मवेशियों की नस्लों में देर से परिपक्वता (late maturation) एक आम समस्या है। पशुपालकों द्वारा ऑस्ट्रा चक्र के दौरान गर्मी के लक्षणों की कोई सटीक पहचान कर पाना वेहद मुश्किल है। इसलिय वियात का अंतराल बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप पशु प्रदर्शन की दक्षता में कमी आती है। गर्भपात के कारण होने वाले रोग उधोग को आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं। खनिज, और विटामिन की कमी से प्रजनन संबंधी समस्याएं होती हैं। जिससे पशुपालकों पर सीधी आर्थिक मार पड़ती है
लम्बे समय से किसान और पशुपालक एक ही पद्धति पर कार्य करते आए हैं जबकि जरुरत रहन सहन और वातावरण पूरी तरह बदल चुके हैं जिस कारण आज भी दुग्ध उत्पादन उधोग विसंघतित डेयरी उधोग है, अच्छे संघटित डेयरी उधोग में वदलने के लिय शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है लेकिन सफल होने के लिए उन्हें प्रकृति में भाग लेना होगा। इस संबंध में, सभी कर्मचारियों की शिक्षा और प्रशिक्षण आवश्यक है ताकि वे समझ सकें कि वे क्या कर रहे हैं और स्वामित्व की भावना विकसित कर रहे हैं। जब भारत में 70 प्रतिशत किसान और पशुपालक हैं तो क्यों न प्रशिक्षण लेकर रोजगार और आय की दिशा में कुछ नया और वेहतर किया जाये
पशुओं में बीमारी के लक्षण प्रारम्भिक अवस्था में पता न लग पाना पशुपालकों के लिय आम बात है और जब तक पशु की बीमार स्थति का पता लगता है तब तक देर हो चुकी होती है जिसके कारण या तो इलाज़ की लागत बड जाती है या फिर उस पशु की जान बचाना मुश्किल हो जाता है इससे म्रत्युदर में बढोत्तरी होती और इसका नुक्सान पशुपालक को सीधा होता है पशुओं की आबादी और पशु चिकित्सा संस्थान के बीच अनुपात का सन्तुलन भी नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप जानवरों को अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं मिलती हैं। नियमित और आवधिक टीकाकरण कार्यक्रम का पालन नहीं किया जाता है, नियमित रूप से टीकाकरण में बदलाव की निरंतरता के अनुसार नहीं किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप बच्चो में भारी मृत्यु दर होती है, खासकर भैंस में। विभिन्न पशु रोगों के खिलाफ कोई पर्याप्त प्रतिरक्षा कार्य प्रणाली स्थापित नहीं की जाती है।